जो गुज़र गया सो गुज़र गया ! वक्त कभी भी किसी का भी इंतेज़ार नहीं करता।

बात बहुत सालों की है जब किरण और सूरज का प्रेम-विवाह हुआ था ! केहने के लिये किसने किस से प्रेम-किया था इसका अंदाज़ा किसी को भी नहीं था लेकिन दोनो ने बहुत परिश्रम से माता-पिता की सम्मति मिलने तक आंदोलन किया और घरवालों के आशीर्वाद से ब्याह कर लिया ! ब्याह तो कर लिया किन्तु अब जो ज़िंदगी है वो तो दोनो को निभानी है ... जीवन की ऊंच -नीच और ज़िंदगी की भाग-दौड़ में कब दोनो पति-पत्नी की जिम्मेदारी तो निभाने लगे परंतु एक दूसरे के लिये वो प्रेमी और प्रेमिका बन ना कहीं पीछे भूल आये ! शायद इसी प्यार की कमी की वजह से दोनो के बीच एक कड़वाहट सी आगयी ! अब तक तो दोनो एक-दूसरे के आदि हो चुके थे इस वजह से भी एक-दूसरे से दूर भी नहीं रेहा पाते थे, मगर जब भी आमना-सामना हो तब दोनो हे लंगूर की तरह लड़ने-झगड़ने बैठ जाते। सूरज घर के बारे में सोचकर हे घबरा जाता और घर जाने से ही कतरता ! किरण की हमेशा से शिकायत यही रेहती के सूरज कभी वक़्त पर घर नहीं आता ! जो भी हो दोनो को एक-दूसरे से लड़ने के कयी बहाने बैठे-बिठाये मिल जाता था. 
एक दिन सूरज अपने दफ्तर में काम की मुसरुफियत में था और उसे उसके मॅनेजर से एक कॉल आता है के - 'सूरज, क्या तुम चांदनी को थोड़ा मार्केटिंग के बारे में ट्रैनिंग दे सक्ते हो? अभी नयी -नयी भर्ती हुई है टीम में और कोई तुम जैसा होनहार उसे ट्रैनिंग दे तो वो काम जल्दी भी सीख सकती है। '
सूरज ने अपने बॉस की बात सुनकर झट हाँ कर दी और कुछ देर में चांदनी एक बेहद खूबसूरत लड़की जो के अपने हाव-भाव से एक पक्की प्रोफेशनल नज़र आती थी . उसने बड़े अदब से सूरज को नमस्ते कहा और कुर्सी पर बैठने की इजाजत ली. सूरज ने चांदनी को इतनी जल्दी प्रतिष्ठित होंगी ऐसा नहीं सोचा था, खैर अब आ ही गयी हैं तो उसे मार्केटिंग के बारे में दो-टीन बातें बताने लगे और कहा के गर उसके पास टाइम हो तो वो उसे ट्रैनिंग दे सकते हैं ! चांदनी, काम सीखने और कंपनी में तरक्की की उम्मीद से आई थी इसीलिये उसने एक भी मौका जाने नहीं दिया और सूरज के साथ रोज़ ३ घंटे ट्रैनिग लेने लगी ! ट्रैनिंग के साथ -साथ चँदनी और सूरज अच्छे दोस्त भी बन ने लगे जाने-अनजाने में दोनो एक दूसरे के साथ का आनंद लेने लगे. सूरज दफ्तर में ज्यादा खुश नज़र आने लगा और घर जाने के नाम से कतराने लगा। 
लम्बी-चौड़ी बात नहीं बस दोनो में प्यार होगया. सूरज की गर्मी चांदनी की ठंडक में मेहकने लगी. ऑफीस का काम होता और ऑफीस खत्म होने पर श्याम प्यार-मोहब्बत में गुज़रती. 
सूरज जब घर पहुंचता तब किरण सो चुकी होती और जब सूरज जागता तब किरण जा चुकी होती. खैर, एक ही छत के नीचे दो अजनबी से वे रेहने लगे। ज़िंदगी गुज़ारने के लिये भूखे भी जी ही लेते हैं जब तक हवा-पानी का बंदोबस्त रेहता है, शायद यहाँ भी ऐसा ही कुछ था। सूरज सेहर के इंतेज़ार में चांदनी से मिलने की राह देखता और सारा दिन गुज़र जाने के बाद चांदनी से तब तक अलविदा केहता जब तक चांदनी खुद नहीं सो जाती. 
मोहब्बत इंसान को उस रोशनी की तरह है जो दूर से सुकून देती है और उजाले की भांती अपनी गर्मी और उत्सुकता बनाये रखती है . किरण सूरज की किरण बनकर भी कभी सूरज की नहीं हो पायी, अफसोस मगर चांदनी अपनी ठंडक से सूरज के जिगर में घर कर गयी !

Comments

  1. sounds like a known story.

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  2. It's a common story I guess ... people take it for granted in relationship and that spoils everything... thanks for reading Praveen ji

    Cheers,
    fiza

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