नींद एक सफर ...

ये नींद तेरे साथ का सफर भी क्या सफर है। गुनगुनाती हल्के से थपथपाती सुनहरे सफर पर ले जाती 
मेरी अपनी कहानी केहा रही हूँ आज ... बचपन में पढ़ा था विज्ञान की किताब में के तंदुरुस्ती के लिये किसी भी जीवि को आठ घंटे की नींद का सफर तैय करना ज़रूरी है। जी हाँ, एक वो बात पढ़ी और फिर ज़िंदगी भर उसे निभाई। कभी काम की मुसरुफियत तो कभी वीकेंड के लम्बे मस्तियों भरे पलों की वजह से जब भी आठ घंटे नींद का सफर नहीं कर पायी तब मैने बड़े ही बदले की भावना से अपने आपको ललकारा है और जिद्दी होकर आठ घंटे सुख की नींद भी ली है . आज की सुबहा कुछ ऐसे ही रही -- पिछले दो हफ़्ते से काम और काम की वजह से मेरे आठ घंटे की नींद में खलन पड़ रहा था और मैने भी हौसला रखते हुये वीकेंड का इंतज़ार  किया ....शुक्रवार की रात थी १२ बजकर रात धीरे - धीरे शनिवार की तरफ बड़ रही थी और मैने अब के मौका जाने ना दिया बस पेहली जो बस मिली उसी में सवार होगयी और निद्रा की गोद में चली गयी . सपनो के गांव से गुज़रते हुये एक कहानी से दूसरी पर से होते हुये कैसे प्रातःकाल ७:३० बजे जब मेरी पलकों ने किवाड़ खोला, अपनी किवाड़ से जब कमरे की किवाड़ तक नज़र पहुंची तब देखा बादल हल्के से मानो केहा रहे हों के सोजा अब थोड़ी देर और सोजा मैने आव ना देखा ताव और झट से कंफर्टर ओढ़कर फिर सो गयी - इस बार सफर काफी रंगीन था शुष्कता और उस पर एक गरम हाथ का आना पास लेकर सुलाजाना फिर ...मानो एक लम्बी गेहरी निद्रा के सफर में निकाली थी जब आंख खुली सुबहा के १० बजे तब एक गीत गुनगुना रहा था ये मन या दीमाग? पता नहीं लेकिन बोल कुछ इस तरह के थे ----- "जाने क्यूं लोग प्यार करते हैं?" 
बस ये गीत और मैं उठगयी सोचने लगी ऐसा गीत क्यूं? लेकिन जो भी हो दिल में एक विजयी होने की खुशी और समृधता का जुनून था :) मैं जीत गयी हार आने वाली कठिनाईयों का सामना करते हुये मेरे आठ से भी अधिक निद्रा का सफर में पूरा कर पायी - खुशी के साधन कयी होंगे मगर खुशी तुम्हें किस से मिले वो ज्यादा ज़रूरी है ! 

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