दिये से दिया जलता है और ऐसे ही अंधेरा मिटता है !
जीवन में कभी किसी के लिये कुछ करने की इच्छा हो तो कुछ ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्युंके उस इच्छा में और करने की लगन में सब कुछ शामिल हो जाता है.
आज "अंतरध्वनी" के तेहत मुझे भी न्योता मिला पंडितों और ज्ञानियों की सभा में जाने का और कुछ अत्यंत साधारण लोगों से मिलने का अवसर मिला. ये कार्यक्रम एक धर्मार्थ-संघठन के लिये दान और चंदा इक्कॅटा करने का कार्यक्रम था. जो चंदा जमा हुये हैं उन्हें भारत के एक छोटे से गांव में भेजा जायेगा जहां एक स्कूल बना है और गांव के वो बच्चे जो कभी शिक्षा पाने का ख्वाब भी नहीं देख सकते ऐसे बच्चों को और उनके परिवारों को एक आशा की किरण दीखाते हुये डॉक्टर श्री. विजय तिवारी जी अपनी संस्था दया सुमित्रा एजुकेशनल सोसाइटी इनकॉर्पोरेशन के तेहत "द्सेट पब्लिक स्कूल" चलाते हैं और इनकी ये संस्था भारत सरकार द्वारा "गैर-लाभ" संस्था करार दी गयी है.
हम जहां कयी रुपये आम चीज़ों में फालतू में खर्च कर देते हैं वहीं १ डॉलर से भारत के इस द्सेट पब्लिक स्कूल में एक बच्चा या बच्ची की पढ़ाई, एक वक़्त का खाना, उसकी टीचर की फीस का खर्चा पूरा होता है . कहाँ तो हम २५ सेंट जोड़-कर लोगों को सिगरेट या पान-सुपारी जैसी चीज़ों में खर्च करते हुये कतराते भी नहीं और यहाँ देखो १ डॉलर में किसी का भविष्य संवर रहा है और ये काम बड़े हे नेकी से डॉक्टर विजय तिवारी जी कर रहे हैं। करने के लिये इंसान क्या नहीं करता, मगर इतना सब करने के बावज़ूद अजरज की बात ये है के ये इंसान जो देखने में दुबला-पतला सा है मगर काफी लम्बा भी है, मगर अपनी लंबाई से दुगना वो झुक -झुक कर लोगों का धन्यवाद कर रहे थे। सादगी और नम्रता मानो सारे जग की इन्हें ही मिली हो - एक नेक इंसान से मुलाकात हुई आज बहुत दिनो तक दिल खुश रहेगा और दुआओं में याद रखा भी जायेगा !
ज़िंदगी में कुछ करो तो ऐसा के एक नहीं सौ-सौ दिये जलकर रोशनी से भरदें संसार ! मुझे सबसे ज्यादा खुशी ये जानकर हुई के गैर-लाभ के ज़रिये उन्होने सिर्फ एक स्कूल नहीं खोला बल्कि वहां के छात्र-छात्राओं को सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी स्कूल ऑफ एजुकेशन के स्यल्लाबुस के तेहत पढ़ाया जाता है। ये वाक़ई काबिल-ए-तारीफ की बात है। करो तो इस तरह करो के किसी के काम भी आये आखिर।
दिये से दिया जलता है और ऐसे ही अंधेरा मिटता है - दोस्तों इस वेबसाइट पर जाइये और दान कीजिये जितना भी दे सकें दीजिये क्युंके १ डॉलर से किसी की इतनी मदत हो सकती है तो हम सब १ डॉलर से ज्यादा ज़रूर दे सकते हैं।
नमन है ऐसे लोगों को जिनके दिल ज़मीन पर होकर भी खुला आसमान सा बड़ा रखते हैं !
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