ज़िंदगी में कभी किसी के लिये कुछ करो तो दिल से करो और उसे बोलकर अपमान मत करो...
ज़िंदगी में कभी किसी के लिये कुछ करो तो दिल से करो और उसे बोलकर अपमान मत करो.
इंसान कभी किसी के लिये कुछ भी करता है तब उसे दया की भावना से नहीं बल्कि नेक दिल से सहायता के रूप से ही करना चाहिये। कभी भी किसी की मदत करके उसे आप बोलकर दीखा दो तब वो नेकी, नेकी ना रेहकर एक एहसान बन जाता है और हर खुद्दार इंसान को ये एहसान बर्दाश्त नहीं होता।
ज़िंदगी में इंसान के पास सामाजिक तत्वों की कमी हो सकती है किन्तु उसके लिये आत्मा सम्मान का खून होते हुये कोई नहीं देख सकता. कभी कोई आपके पास उम्मीद करके आता है सहायता या विश्वास भी दीखता है तो उसे उसकी कमज़ोरी मानकर कभी मत चलना। किसी के आत्मविश्वास और विश्वसनिया को भंग ना करना क्युंके फिर कभी वो इंसान तुम्हारे पास किसी भी उम्मेद से नहीं आयेगा और कभी -कभी अच्छी दोस्ती भी दूरी में बदल जाती है .
करो मदत अपने दिल से किसी के सामने उसकी नुमाइश करके आप किसी और के विश्वास का अपमान कर रहे हो बस इसका ध्यान रहे !
नेकी कर दरिया में डाल, कर्म करो और फल की कामना मत करो ऐसे कई मुहावरे जीवन में पढ़ने मिलेंगे जो किसी वजह से शामिल हैं.
आखिरकार एक बात हर इंसान को याद रेहनी चाहिये के वो क्या लेकर आया था जो किसी और को अपने होने का, अपने करने का एहसास भी जताता है ?
इसे अहंकार ही माना जाता है - मदत नहीं!
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