जी हाँ आप - कृपया आप ही रहें क्युंके बनावट के फूलों से खुश्बू कभी नहीं आती !

ज़िंदगी एक है और उसे अपना समझकर जियो तो अपने होने का भी एक गौरव होता है, सही कहा ना?
अजीब लगता है ये देखकर के इंसान कुछ और बनने की कोशिश में लगा रेहता है जाने क्यूं ? किसके लिये? 
मेरा एक सीधा- साधा फंडा है और वो ये के हम तो बस ऐसे हैं पसंद करो या ना करो - किसी और को अच्छे लगने के लिये हमसे बदला नहीं जायेगा - क्यूं? मानते हो या नहीं? गर नहीं तो मैं यही कहूँगी के आप ढोंगी हैं, आप बेहरूपिया हैं, आप सबकुछ हैं मगर आप "आप" नहीं हैं .
जी हाँ, ज़िंदगी एक ही है उसे खुद बनकर, खुद होकर जियो तो जीने का भी कोई मतलब है वर्ना क्या हम कब कहाँ किस मोड पर हुये और कहाँ कैसे कब किधर को चल दिये !
जी हाँ आप - कृपया आप ही रहें क्युंके बनावट के फूलों से खुश्बू कभी नहीं आती !

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