खुलके मुस्कुरा तू ज़िंदगी
ज़िंदगी में कभी सोचा है की मोहब्बत की दरअसल उम्र नहीं होती ! जी हाँ, नहीं होती और शायद इसीलिये वो हमेशा जवान होती है !
और ना केवल मोहब्बत बलके मोहब्बत करने वाले भी जवान हो जाते हैं उनको कभी उम्र की जंग नहीं लगती. जो दिन भर लड़ाई नफरत और गुस्सेल प्रवृति रखते हाइन उनकी तो ज्यादा उम्र ना होते हुये भी बुढापे की ओर जाते नज़र आने लगते हैं। प्यार वाक़ई ज़िंदगी को गुलशन बना देता है और यार को गुलज़ार ! ज़िंदगी एक है और इसे अगर प्यार-मोहब्बत से बिताई जाये तो क्या हर्ज़ है? मरना और मारना तो कोई भी कर सकता है, लड़ाई में ताक़त काम और मोहब्बत में सारा जहां आपका दीवाना होता है !
मोहब्बत करें, नफरतों से वैसे भी किसी का कुछ नहीं बनने वाला - ऐसे में कुछ ऐसी पंक्तियाँ ज़ेहन में आई.....
खुलके मुस्कुरा तू ज़िंदगी
शायद मुर्दे में आजाये ज़िंदगी
कुछ नहीं तो बोल पड़ेगी ज़िंदगी
नफरतों में खत्म है ज़िंदगी
अंत का क्या करेगी ये ज़िंदगी
आती-जाती ये है ज़िंदगी
फिर क्यूं ना खुलके जी ज़िंदगी
मोहब्बत का सिलसिला शुरू कर ज़िंदगी
~ फ़िज़ा
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