मर्द भी पीड़ित हैं आज की नारी से जिसे कभी हम अबला समझते थे ....!
ज़िंदगी में बहुत कम समय में बहुत कुछ सीखने और समझने का मौका मिला। कयी बार हम देखते हैं लोगों के रवैये कभी कुछ तो कभी कुछ लेकिन इसी रवैये को आप दो तरीके से देख सकते हैं या भांप सकते हैं और वो ये के शायद ये प्यार से हक दीखाने का नज़रिया है या फिर कहें तो वाक़ई तकलीफ देने के इरादे से ही है . मैने औरतों को समय समय पर मौके का फायदा उठाते देखा है जब में ये केहा रही हूँ तब ये नहीं केहा रही के आदमी सब शरीफ हैं :) , ना ऐसा नहीं लेकिन हम औरतें भी कुछ कम नहीं हैं मौका देखा नहीं अपने फायदे के अनुसार हम अच्छे बनेंगे या फिर बुरे।
मेरी बात तो कुछ ऐसी है के कभी किसी से कुछ उम्मीद ही नहीं रखी जो भी रखा अपने पिताजी से ही रखा और जैसे ही उनके सर से जिम्मेदारी खत्म होकर आत्मनिर्भर का समय आया तो किसी और पर निर्भर होने की लालसा भी नहीं रही। मुझे लगता है किसी पर इतना निर्भर होना और वो भी बेफिक्र होकर तो पिता से बढ़कर एक लड़की के लिये कौन हो सकता है।
लेकिन दुनिया में ऐसे भी औरतों को देखा है जो पिता का स्थान खत्म होते ही पति के सर चड़ जाते हैं के मुझे ये चाहिये वो चाहिये महल चाहिये बड़ा घर, तो कभी ज़ेवर, तो गाड़ी तो कभी क्या. जैसे ही ये सब इच्छा पूरी हो जाती है तब वो अपने पति को एक कुत्ते की हैसियत भी नहीं देती - घोर अन्याय है ना?
कितनी ज़ालिम हैं ये औरतें भी जब के जानती हैं के पति मर-मर कर कमा रहा होगा उनके खवाबों को पूरा करने क्यूंकि ना करने पर एही बीवियाँ ताने भी मारती हैं और अपनी बीवी के आगे कौन पति हीरो नहीं बनना चाहता - बस लग जाता है तिनके -तिनके को जोड़ने. तरस आता है ऐसी बीवियों पर जो के अपने पति से लिस्ट भर चीज़ों की मांग करती हैं मगर एक "सुकून" नाम की चीज़ वो दे नहीं पाती - अफसोस!
ये चंद औरतें हैं जो ऐसा करती हैं जिन्हे ऐसा लगता है के दुनिया उनके दम पर है, पतियों को में कायर कैसे कहूँ वो तो शायद परिवार को बचाने के लिये भी चुप रेहा लेते हैं या फिर इस उम्मीद पर के शायद दिन बदल जायें और सुधार आजाये मगर फिर ये तो उसी तरह हुआ के गधे के सींग निकलने तक इंतेज़ार !
औरतों को थोड़ा सा अपने दायरे से हटकर देखना चाहिये के उनके पतियों पर क्या बीतती है और यदि उनपर ऐसा कोई प्रभाव डालता तब उनका क्या हाल होता? बस एक सोच शायद किसी को अच्छे दिन दीखला जाये !
मर्द भी पीड़ित हैं आज की नारी से जिसे कभी हम अबला समझते थे !
आडंबर जीवन आखिर कब तक तुम्हेईn खुशी दे सकते हैं? सोचने वाली बात है इंन्ट -पठार और ज़ेवराटों से नहीं दिल को सुकून मिलता इनसे शायद बाहर की सौन्दर्यता को बढ़ावा मिलजाता है मगर ये भी तब अच्छे लगते हाइन जब कोई अंदर से खुश हो . जीवन में खुशी के लिये बहुत कम जगह और बहुत कम चीज़ों की ज़रूरत होती है - दो वक़्त की रोटी, सर के ऊपर एक छत और तन ढकने के लिये कपड़ा ये तो प्राचीनकाल की बातें थी मगर अब भी बहुत कुछ उतना ही रहे तब भी जीवन इंसान खुशी से जी सकता है बस हौसले बुलंद हों और दिल में सब के लिये मोहब्बत हो क्यूंकि स्वार्थी होने से इंसान फिर कभी भी किसी के लिये नहीं सोचता बस उसका अपने तक ही सीमित सोच और इच्छा पूर्ति का लक्ष्य रेहता है।
निस्वार्थ प्रेम करें फिर देखें कितना भरपूर स्नेह आपको मिलेगा !
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