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दूसरों से ईर्ष्या करने से अच्छा दूसरों की अच्छी बातें क्यूं नहीं अपना लेते?

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ज़िंदगी में अगर कोई आपसे ज्यादा सयाना हो तो उसमें उस इंसान से ईर्ष्या मत करो. उसके साथ रेहकर कुछ सीखो या फिर ये मान लो के आप उस काबिल नहीं हो और उनकी इज्जत करना सीखो. इस से हर किसी का भला ही होगा. यदि आप ईर्ष्या करने लगे तो साजीग है की आपकी उनसे ज्यादा अच्छी बनेगी भी नहीं और बेवजह आप एक अच्छा इंसान की दोस्ती को खो दोगे. इससे नुकसान आपका ही होगा क्यूंकि कुछ अच्छा सीखने का और अच्छी दोस्ती को - दोनो का ही अवसर आपने खो दिया।  सुना है शक भी एक ऐसी ही बुरी बला का नाम है। बेवजह अपने मन के विकृत खयालात को पनपने ना दें इस से आप के अंदर की कमजोरी ही नज़र आती है और सामने वाला इंसान कुछ नहीं जानते हुये अपनी ज़िंदगी जीता है। ऐसे में आप एक अच्छे दोस्त को खो भी सकते हैं हमेशा के लिये  कभी भी अपने दिल के विकृत खयाल को पनपने देने से पेहले एक बार अपने दिल में टटोलकर -जांच कर लेनी चाहिये ताके बात का बतंगड ना बने और आप औरों के सामने मज़ाक की वस्तु ना बनें. ईर्ष्या से आप अपना अस्तित्वा खो बैठेंगे और इसके जिम्मेवार आप खुद होंगे !