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सवाल करने वाले को न रोकें और न ही उन्हें नफरत से देखें!

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स्कूल के दिनों में कक्षा में सवाल करना बुद्धिमानी की निशानी मानी जाती थी. आप ज्यादा सवाल करते हो तो अध्यापिका को और सभी बड़े-बुज़ुर्गों को लगता था के बच्चा जिज्ञासी है और ऐसे छात्र को हर कोई तारीफों के पुल पर खड़ा कर देता था. वोही सवाल जब आप अपने सरकार से, उसकी अर्थ-व्यवस्था से करे तो उसे आंतकवादी, देशद्रोही, तो अब नया सुना है 'अर्बन नक्सल ' का नाम करार दिया जाता है. इंसान को हर किसी अर्थ-व्यवस्था से सवाल करने का हक़ होना चाहिए, चाहे फिर वो उनके दफ्तर में हों, या समाज में! सवाल - जवाब से जानकारी बढ़ती है, मानसिक विकास होता है, चुनौती को गले लगाते हैं हम, अपने प्रयासों को देखने का, अपनी नाकामियाबी  को समझने का अवसर प्राप्त होता है  और अगर किसी सवाल का जवाब न भी मिले तब भी सवाल करना बंद नहीं होना चाहिए !  हर सवाल का जवाब न हों मगर हर सवाल हम सब को सोचने पर मजबूर कर देना चाहिए क्यूंकि तय मानसिकता हमें विकास करने से रोकती है ! हर देश का विकास उसमें बसने वाले लोगों से है, जनता से है ! ऐसे में जनता को सवाल पूछना बंद नहीं करना चाहिए और जब ऐसी अर्थ-व्यवस्था हमें सवाल करने से रोकती है य

क्यों स्त्री को आम इंसान नहीं माना जाता?

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समाज में स्त्री को देखने का नजरिया बहुत ही सरंचित है ! या तो स्त्री को एक घरेलु हुलिए में बंद कर दिया जाता है जिसे हर कोई कांच के डिब्बे में बंद करके घूरता है या फिर स्त्री को शारीरिक तौर पर एक दर्शन मात्र वस्तु की भांति उसे कांच की बोतल में बंद करके उसे न केवल घुरा जाता है बल्कि उसे शर्मनाक बातों से व्यवहारों से और आपत्तिजनक तीव्र घावों से अत्याचार किया जाता है! आखिर कहीं भी रखो देखने का नजरिया एक मनोरंजन का साधन मात्र है स्त्री!  कभी लगा शायद लोगों की सोच है जिसे शिक्षा के माध्यम से विचार-परिवर्तन लाया जा सकता है किन्तु जब हाल ही में अमरीका के मरीन फ़ौज में कुछ मर्दों ने अपने सहयोगियों के नग्न चित्रों को फेसबुक में प्रकाशित कर के बुद्धिजवियों की भी धज्जियाँ उड़ाई है ! क्या स्त्री मात्र एक वस्तु है मनोरंजन का? उसके अरमान, उसकी इच्छा, या फिर उसकी अपनी कोई राय या एहमियत नहीं है? एक वक्त था जब स्त्री को सिर्फ उत्पादन का साधन माना जाता था और फिर जब स्त्री अपने पैरों पर खड़ी हुई, अपना बोझ खुद ही सँभालने लगी तब उसे विभिन्न तानों से हतोत्साह किया, कुछ नहीं तो वेश्या या अन्य बातों से उसे

किसने कहा था जीना आसान होता है?

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ज़िंदगी में गलतियां हो जाती हैं और अक्सर हर कोई गलती करता है। कोई छोटी गलती करके बच जाता है तो कोई बड़ी गलती करके पकड़ा जाता है।   इंसान हैं और इंसानों से ही गलतियां होती हैं।  इंसान इकरार करता है इसीलिए गलती माना भी जानता है, वरना जानवरों की भांति बात होती।  कुछ गलतियां इंसान-इंसान में फरक महसूस करवाता है जैसे की किसी की गलती किसी को बहुत बड़ा अपराध नज़र आता है तो किसी को नहीं! आखिर वजह क्या है ? इंसान गलतियां करता है किसी न किसी कारणवश और वजह सही हो या गलत ये हर कोई अपने ढंग से आँकता है।  कुछ गलती समय की वजह से गलत साबित होते हैं तो कुछ कर्म से ही गलत माने जाते हैं।  काश जीना आसान होता, सोचती हूँ जानवर कैसे जीते हैं? क्या उनका भी एक समाज और कटगराह होता है ? गलतियां जिसकी परिभाषा करने वाले के पास अलग और गलती मनवाने वाले के पास अलग होता है - अभिप्राय! सुना था कुछ लोग केहा रहे थे गलतियां करते जाओ तभी तो सीखोगे :) हम गलती कर बैठे ऐसा कहते हैं और अब हम गुनेहगार हो गए !!! किसने कहा था जीना आसान होता है?  ~ फ़िज़ा 

कट्यार काळजात घुसली ...!

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कट्यार काळजात घुसली - हा चित्रपट मी सुरुवाती पासून रडत बघित्लस. का रडायला आला विचार् केलास तर नीट काही हि सांगता येत नाही कारण एकाधा पुणेची आठवण म्हणून तर एकाधा लहान पणेची आठवण काही हि म्हणा पण रडू आलास मात्र - एकदम भावनिक.  थोडक्यात सांगितला तर अप्रतिम चित्रपट आणि आजचा नवीन पिढीनं  एकदम संस्कृतीशी लक्षणीय मनोरंजन वाटला. संगीत प्रेमींना तर नक्कीच आवढनार अतिशय सुंदर आणि मनोहर भारतीय शास्त्रीय संगीत घराणाच्या जुगलबंदी, शास्त्रीय संगीत न आवाढनारा माणसान सुद्धा चित्रपटात स्वारस्य करतील.  चित्रपट अघधि संगीत, यतार्थ कलाकार बद्धील होत. अहंकाराला कुठेही जागा नाही हे अत्यंत सुंदर आणि सरळ रीतींनी दाखवलास आणि मलातर सदाशिव ह्या पात्र खूपच आवडलास, हा चित्रपट एक भाषा किंवा एक प्रांतासाठी नव्हता हे सगळे जनसामूहांसाठी आहेस आणि प्रत्येकांना शिकायला आणि आनंद घेण्यासाठी गोड चित्रपट आहेस. अभिमान वाटला जेन्वा श्री महेश काळे त्यांचा आवाज स्क्रीन मधून ऐकू आल. धन्य आहे बे एरिया चे सगळे मंडळी - सचिन महानुभावना तर अघदि भागविण्यासाठी रोल होता - श्री सुबोध भावेनं अनेक अभिनंदन ! चित्रपट चा नाव मराठी नाटक चा

"प्रकृति का प्रकोप भूमि पर"....

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इंसान कभी भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएगा शायद इसीलिए इंसान कहलाता है! सबसे अधिक ज्ञानी और समझदार, वरना जानवर नहीं कहलाता? जो वोही करता है जो उस से उम्मीद राखी जाती है ! "प्रकृति का प्रकोप भूमि पर", बस इस वाक्यांश का प्रयोग करते करते वो अपनी हर मुराद पूरी करता है और जब नुक्सान भुगतना पड़ता है तब किसी और का कन्धा खोजता है ! भोपाल गैस कांड २ दिसंबर १९८४ में हुआ था और उसकी वजह तो प्रकृति पर दे दिया किन्तु असल वजह घूसखोरी और भ्रष्टाचार है और आज जो हम चेन्नई की त्रासदी को भी प्रकृति का दोष मान रहे हैं ! आँखें खोल रे इंसान कब तक खुद को और दूसरों को अँधेरे में रखेगा? आखिर अपने ही वंशज को खोएगा क्यूंकि जब वर्षा से बाढ़ आई तब उसने उंच -नीच कुछ नहीं देखा। यहीं सीख ले इंसान स्वर्ग-नरक का खेल यहीं हैं ! छोटा-बड़ा का मोल सबको आखिर एक ही तरह चुकाना पड़ता है - जाग जा इंसान, अपने ही अंत का कारन बन रहा है तू कैसा बुद्धिजीवी है रे? जागो, अन्याय, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाओ, चंद  सिक्कों के लिए अपनी ही नहीं  सारी  इंसान जाती का सर्वनाश न करो.  ~ फ़िज़ा 

भगोड़े निकले आप तो :)

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मज़ाक समझ रखा है, बीवी कहती है देश छोड़दो कहीं और चलो और महाशय ने सबसे केह भी दिया और सभी ने बढ़-चढ़ कर प्रोत्साहन भी कर दिया - भई वाह! आमिर खान एक भारतीय और एक हिंदी फिल्म जगत के जाने-माने अभिनेता हैं. भारत में हो रही दुर्भाग्यवश घटना और आम लोगों की जीवनचर्या को सरकार ने अपने नए कारनामों की वजह से एक खलबली मचा राखी है और लोग अपने हर तरीके से इस बात का खंडन कर रहे हैं और यहाँ हमारे आमिर खान जी आये देश से विदेश की ओर लपकने.  हम तो पूछेंगे कल को दुनिया में ऐसी असहिष्णुता (इनटॉलेरेंस) आई तो क्या दुनिया छोड़ देंगे? उम्मीद तो बहुत थी आमिर खान से जिन्होंने सत्यमेव जयते जैसा कार्यक्रम करके अपनी झोली तो बहुत भरी लेकिन सोचा कुछ आम जनता में जागरूकता भी लायी, खेर देश में ही रूककर सरकार का विरोध करते और अपने अन्य देशवासियों का साथ निभाते जो उन्ही की तरह अपनी ज़िन्दगी और अपने आने वाले बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हैं।  भगोड़े निकले आप तो :) ~ फ़िज़ा 

मेरी दरख्वास्त दोस्तों से ... !!!

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दोस्तों देश छोड़ दिया लेकिन जहाँ जन्म लिया वहां देश के बारे में सोचना क्यों छोड़ दें? और तो और प्रधानमंत्री ने खुद कहा के पूरा जहाँ हमारा है तो फिर लोग ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं के देश की भलाई चाहते हो तो देश में आकर रहो? जितने साल हम देश में थे लड़े और भ्रष्टाचार कर्मचारियों को बेनकाब किया और बिना घूसखोरी के अपने काम पूरे किये। इतने बड़े देश का एक तिनका होनेके बावजूद हमने अपना कर्म और धर्म निभाया - यहाँ धर्म इंसानियत है ! मुझे मेरे सभी साथियों से यही कहना है की आप लोग जो समर्थन कर रहे हैं मुझे - सामने आकर या फिर सन्देश भेजकर उन सभी को मैं तहे-दिल से शुक्रिया कहना चाहती हूँ। और मैं ये भी कहना चाहती हूँ के दोस्तों यदि किसी कारणवश आप डरते हैं की मुझ से सहमत होने से आपको अपनी छवि (इमेज) ख़राब होती है या बेनकाब हो जाते हो तो आप कृपया करके सहमति न दीजिये और साथ न दीजिये - मुझे इस बात का कतई बुरा नहीं लगेगा। स्वंत्र भारत में पैदा हुई हूँ मैं और महाराष्ट्र के राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में पली  बड़ी हूँ इस करके भी दिल की बात कहना और अपनी बात स्पष्ट रूप से कहने का हक़ रखती हूँ।  हमारे बाल गंगाधर ति