बेहते पानी को कौन रोक सका है? हो सके तो बेहा चलो मगर उसे रोकने या टोकने की कोशिश ना करो....
बेहते पानी को कौन रोक सका है? हो सके तो बेहा चलो मगर उसे रोकने या टोकने की कोशिश ना करो. मैं बात कर रही हूँ उस पल की जब इंसान किसी खुशगवार या ज़िंदादिल इंसान को देखकर लालस रखता है के काश मैं भी इनके संग दो पल जी लूँ ताके ज़िंदगी जीने का एहसास और वो खुशी दोनो ही हासिल हो जाये मगर ये भूल जाते हैं के इसे बांध के रखोगे तो ये आपका नहीं रहेगा जितना खुला छोड़ोगे उतना ही फासला काम होगा . जिसका स्वभाव बेहते पानी की तरह हो उसे बेहने देना चाहिये और क्यूं नहीं उसकी प्रवृति और उसकी स्वतंत्रता ही है जो उसके अंदर के इंसान को जगाये रखता है जैसे ही हम रोक-टोक करते हैं उसकी प्रवृति में फरक पड़ता है और जो सबसे ज्यादा पसंदीदा इंसान माना जाता था वोही इंसान इंसान ना रेहाकर हेवान बन जाता है क्यूंकि किसे अपनी आज़ादी गवारा नहीं? बेहते पानी को बेहने दो, देखना ये चाहिये के क्या तुम बेहा सकते हो उसके साथ? गर नहीं तो कोशिश कीजिये मगर बेहती रफ़्तार को कम करने की कोशिश कभी ना कीजिये.... ये सभी के भले के लिया है ...