प्यार करें मगर निस्वार्थ...!

ज़िंदगी में तो सभी मोहब्बत करते हैं मगर मोहब्बत को कौन मोहब्बत करता है ? है ना बेचइदा सवाल.... लगना भी चाहिये क्युंके जो मोहब्बत से ना करे मोहब्बत वो क्या जाने मोहब्बत का मोल.
जो मोहब्बत या प्यार देखने मिलता है वो सिर्फ एक स्वार्थी प्यार है जी हाँ ये प्यार स्वार्थी इसीलिये है क्युंके आपको कोई अच्छा लगता है इसीलिये आप उनपर जान लुटाते हैं मगर हक़ीक़त मैं मोहब्बत है? सोचिये यदि कोई दीखने में सुन्दर और आकर्षक ना होकर उसकी अच्छाइयों को जानकर और समझकर उस से प्यार किया जाये तो कोई मतलब भी रेहता है क्युंके सुंदरता हमेशा साथ नहीं देती तो क्या आप अपने प्यार को बदलते रहेंगे ? है ना बेचइदा सवाल ;) 
दुनिया में हज़ारों मिलेंगे जो आप पर जान लुटायेंगे मगर कोई नहीं होगा जो आप पर सही अर्थ में मरमिटेगा क्युंके उनका प्यार स्वार्थी है और प्यार कभी भी निस्वार्थी होता है - सोचिये माँ का प्यार सच्चा और निस्वार्थ होता है? यदि वो माँ निस्वार्थी है तो वो ना तो अपने  बच्चों से ना ही अपने पति से या किसी भी व्यक्ति से किसी भी बात की उम्मीद रखेगी - इसका मतलब इंसान को नीयत से ही निस्वार्थ होना चाहिये क्युंके जो स्वार्थी है वो फिर माँ भी हो तब भी अपने बच्चे से स्वार्थ से भरा प्यार ही करेगी - जिसे हमारे भारतीय भाषा में कहें तो रिवाज़ जी - ये एक रिवाज़ है के बच्चे माँ-बाप का खयाल रखें हमेशा  यदि बच्चा ये नहीं करता तो उसे समाज एक बहुत ही बुरा इंसान करार देता है.

लेकिन यही निस्वार्थ रूप से प्यार करें तो इंसान अपनी खुशी से सब कुछ लुटा देता है और मुझे लगता है ऐसे प्यार में सच्चाई और गेहराई टूट के भरी होती है जिसकी हम सभी इंसानो को लालस रेहाती है।
मैं तो समझती हूँ के प्रकृति से बढ़कर कोई नहीं है जो आपको निस्वार्थ स्नेह देता है सूरज कभी भी किसी को भी आंकार नहीं देता अपनी रोशनी , बरखा खुलकर बरसती है जब उसे बरसना होता है और बस चाँद अपनी चांदनी से हर किसी को ललचाता है ये तो अपने पर है के उसे किस हद तक प्यार करें और मुझ से बढ़कर कोई नहीं मेरे चाँद को समझनेवाली ;) 
प्यार करें मगर निस्वार्थ फिर देखिये आप में और आपके प्यार पानेवालों के मन में जो तेज और अपनाइयत पनपती है वो एक अलग जुनून पर ले जाती है

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