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एक शाम सर्कस के नाम .... :(

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बचपन में माता-पिता और भैया के साथ सर्कस देखने जाया करते थे।  उन दिनों परिवार के साथ बहार जाना, घूमना, शॉपिंग करना और मनपसंद का खाना होटलों में खाना जैसे की बस एक दिन में पूरी ज़िन्दगी जी लेने समान होता था. तब सर्कस में करतब दिखने वाले जानवर हों या फिर इंसान सभी खूब पसंद आते थे और कर्तबगारी दिखने वाला भी बलवान और पहलवान नज़र आता था. बचपन तो आखिर बचपन होता है जहाँ सही -गलत, अच्छे -बुरे की पहचान नहीं होती थी और न ही हमारे ज़माने में इतनी जानकारी होती थी जो आजकल के युग में बच्चों को मिलती है. काफी सालों बाद हम कुछ मित्रों के संग सर्कस देखने गए. सर्कस की बात करते हैं तो जैमिनि सर्कस याद आता है काफी मशहूर रहा है भारत में अपने समय में. खैर अमेरिका में तो फिर चकाचौंध की दुनिया है काफी सजीला और तर्कब्दार माहोल था और एक से एक स्त्री-पुरुष करतब दिखा कर लोगों का मनोरंजन करते रहे और फिर वो वक़्त भी आया जब हाथी घोड़े और ऊँट भी आये फिर चीते भी आये… हर एक हंटर की आवाज़ पर जानवर कठपुतली की तरह रिंग मास्टर के इशारों पर नाचता लोग तालियां बजाते और रिंग मास्टर ज़मीन पर हंटर मारता। जा