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Showing posts from September, 2014

मोहब्बत का नाम ही संगीत है फिर चाहे शाम ढले या सेहर शाम तक चले ;)

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आज शाम ढले, मैने रेडियो स्टेशन पर अपना संगीत, गीत और कविता के माध्यम से लोगों से जुड़ने की कोशिश की  ये पेहली बार था जीवन में एक ऐसा कदम उठाना जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। वर्ना लोग कितने व्यवसाय में रुचि रखते हैं और फिर कोशिश भी करते हैं के देख लें यदि अच्छा लगा तो कर लेंगे वर्ना दूसरी देखलेंगे . खैर रेडियो एक व्यवसाय तो नहीं लेकिन एक शौक के तौर पर शुरवात हो गयी और रेडियो ज़िंदगी की मेहरबानी है के मौका देने से वो भी नहीं चूके. हमेशा से एक आस रही के अपनी पसंद के गीत-संगीत सुनायें ताके लोगों को और भी संगीत का , या कलाकारों के बारे में जानना चाहिये और उनके संगीत को भी समझकर पसंद कर - सराहना चाहिये - ऐसी ही एक कोशिश - "शाम ढले" कार्यक्रम के ज़रिये मैं संगीत की विवेचना करना चाहती हूँ। आज पेहला कार्यक्रम करते वक़्त मैं खुद हर एक गीत पर नाच रही थी, गीत के बोल गा रही थी - बेहद हृदय में खुशी के फूल खिल पड़े. जाने क्यूं दिल को ये तस्सली हुई जब ऐसे गायकों और कवियों के संगीत को पेश किया जो के फिल्मों से हटकर संगीत की पवित्रता में अपना स्थान बनाना चाहते हैं, ऐसे गुणी कलाकारों को

अच्छे को ले और बाकी से सीख लें - मेरा भारत महान

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लोकतंत्र मैं हल्ला मच गया सबने कहा शेर आया शेर आया :) जी मोदी जी अमेरिका पधारे लेकिन शायद ऐसा लगा मानो सिर्फ आज तक वोही पधारे भारत से - खैर वैसे भी हम भारतीय भावुक प्रवृति के हैं और शायद इसी भावुकता का फायदा युग-युग हमारे देश की अर्थव्यवस्था को हिलाता और डुलाता रहा ! भावुक होना ठीक है क्युंके हम इंसान जो हैं अब भी, लेकिन भावुकता मैं बेहजाना कहाँ तक सही है ये हमारी अब की पीढी और आनेवाली जनकल्याण को निश्चित करना है क्युंके भावुकता से कभी कोई मसला सुलझाया नहीं जा सकता और यही सभी को जानना और समझना है।  आज बहुत दिनो बाद राष्ट्रगीत सुनकर यकायक आंख से आंसू निकल पड़े, जाने क्यूं में अपने आपको अपनी भावनाओ को रोक ना सकी बस दिल की गेहराईयों से बचपन याद आगया जहां हम पले -बड़े हुये वहां की सीख दी देश के लिये मर-मिटने का जज़्बा जो कुट कुट कर दिल में भरी थी वो पल भी याद आया जब टोरोंटो में एक जर्नलिस्ट से मेने पंगा लिया था क्युंके उसने न्यूक्लियर टेस्ट के तेहत एक आर्टिकल लिखा जिसमें मेरे भारत को उसने बैलगाड़ी और लालटेन वाला देश कहा था ... एक वो दिन था और एक आज वाक़ई हम माउस से खेलने वाले देशवासी

नींद एक सफर ...

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ये नींद तेरे साथ का सफर भी क्या सफर है। गुनगुनाती हल्के से थपथपाती सुनहरे सफर पर ले जाती  मेरी अपनी कहानी केहा रही हूँ आज ... बचपन में पढ़ा था विज्ञान की किताब में के तंदुरुस्ती के लिये किसी भी जीवि को आठ घंटे की नींद का सफर तैय करना ज़रूरी है। जी हाँ, एक वो बात पढ़ी और फिर ज़िंदगी भर उसे निभाई। कभी काम की मुसरुफियत तो कभी वीकेंड के लम्बे मस्तियों भरे पलों की वजह से जब भी आठ घंटे नींद का सफर नहीं कर पायी तब मैने बड़े ही बदले की भावना से अपने आपको ललकारा है और जिद्दी होकर आठ घंटे सुख की नींद भी ली है . आज की सुबहा कुछ ऐसे ही रही -- पिछले दो हफ़्ते से काम और काम की वजह से मेरे आठ घंटे की नींद में खलन पड़ रहा था और मैने भी हौसला रखते हुये वीकेंड का इंतज़ार  किया ....शुक्रवार की रात थी १२ बजकर रात धीरे - धीरे शनिवार की तरफ बड़ रही थी और मैने अब के मौका जाने ना दिया बस पेहली जो बस मिली उसी में सवार होगयी और निद्रा की गोद में चली गयी . सपनो के गांव से गुज़रते हुये एक कहानी से दूसरी पर से होते हुये कैसे प्रातःकाल ७:३० बजे जब मेरी पलकों ने किवाड़ खोला, अपनी किवाड़ से जब कमरे की किवाड़ तक नज

जी हाँ आप - कृपया आप ही रहें क्युंके बनावट के फूलों से खुश्बू कभी नहीं आती !

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ज़िंदगी एक है और उसे अपना समझकर जियो तो अपने होने का भी एक गौरव होता है, सही कहा ना? अजीब लगता है ये देखकर के इंसान कुछ और बनने की कोशिश में लगा रेहता है जाने क्यूं ? किसके लिये?  मेरा एक सीधा- साधा फंडा है और वो ये के हम तो बस ऐसे हैं पसंद करो या ना करो - किसी और को अच्छे लगने के लिये हमसे बदला नहीं जायेगा - क्यूं? मानते हो या नहीं? गर नहीं तो मैं यही कहूँगी के आप ढोंगी हैं, आप बेहरूपिया हैं, आप सबकुछ हैं मगर आप "आप" नहीं हैं . जी हाँ, ज़िंदगी एक ही है उसे खुद बनकर, खुद होकर जियो तो जीने का भी कोई मतलब है वर्ना क्या हम कब कहाँ किस मोड पर हुये और कहाँ कैसे कब किधर को चल दिये ! जी हाँ आप - कृपया आप ही रहें क्युंके बनावट के फूलों से खुश्बू कभी नहीं आती !

झूठ क्यूं चिल्लाता है और सत्य क्यूं रोता है?

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सत्य मेव जयते ये नारा हम लोग बचपन से सुनते और पढ़ते आरे रहे हैं लेकिन वाक़ई में सत्य की विजय का पता नहीं लेकिन सत्य की मर्यादा को भी लोग नहीं मानते और ना ही इज्जत देते हैं वर्ना झूठ क्यूं चिल्लाता है और सत्य क्यूं रोता है? सोचने वाली बात है आज भी बातों से सक्छाई को नीचा दीखाया जाता है और सच ये हकीकत अपनी आँखों से देखकर शायद खुद पर यकीन नहीं करता इसीलिये तो सत्य रोता है और झूठ चिल्लाता है। झूठ के पैर नहीं होते ऐसा हमने सुना था मगर झूठ के कंठ में बहुत आवाज़ होती है और शायद अपने आपको सही बताने के लिए चिल्लाने की नौबत आती है वर्ना सत्य की तरह शांत क्यूं नहीं रेहता ! फिर भी सवाल यही है के झूठ क्यूं चिल्लाता है और सत्य क्यूं रोता है?

ज़िंदगी में कभी किसी के लिये कुछ करो तो दिल से करो और उसे बोलकर अपमान मत करो...

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ज़िंदगी में कभी किसी के लिये कुछ करो तो दिल से करो और उसे बोलकर अपमान मत करो.  इंसान कभी किसी के लिये कुछ भी करता है तब उसे दया की भावना से नहीं बल्कि नेक दिल से सहायता के रूप से ही करना चाहिये। कभी भी किसी की मदत करके उसे आप बोलकर दीखा दो तब वो नेकी, नेकी ना रेहकर एक एहसान बन जाता है और हर खुद्दार इंसान को ये एहसान बर्दाश्त नहीं होता।  ज़िंदगी में इंसान के पास सामाजिक तत्वों की कमी हो सकती है किन्तु उसके लिये आत्मा सम्मान का खून होते हुये कोई नहीं देख सकता. कभी कोई आपके पास उम्मीद करके आता है सहायता या विश्वास भी दीखता है तो उसे उसकी कमज़ोरी मानकर कभी मत चलना। किसी के आत्मविश्वास और विश्वसनिया को भंग ना करना क्युंके फिर कभी वो इंसान तुम्हारे पास किसी भी उम्मेद से नहीं आयेगा और कभी -कभी अच्छी दोस्ती भी दूरी में बदल जाती है . करो मदत अपने दिल से किसी के सामने उसकी नुमाइश करके आप किसी और के विश्वास का अपमान कर रहे हो बस इसका ध्यान रहे ! नेकी कर दरिया में डाल, कर्म करो और फल की कामना मत करो ऐसे कई मुहावरे जीवन में पढ़ने मिलेंगे जो किसी वजह से शामिल हैं.  आखिरकार एक बात हर इंसान

ज़िंदगी मिली है तो उसे प्यार करना सीखो फिर चाहे वो अपनी ज़िंदगी हो या किसी और की ...!

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ज़िंदगी में इंसान अगर इंसान की कद्र करना जान ले तो फिर उसकी आधी तकलीफ तो वहीं खत्म हो जाती है क्यूंकि उसके पास इंसान होने का दिल है और साथ में कयी इंसान भी हैं. जिस तरह हम सभी ने सुनी है एकता और एकजुट होने की कहानी जहां बूढ़े पिता ने अपने पांचों या सातों बेटों को बुलाकर एक-एक लकड़ी दी थी ये केहाकर के इसे तोडो और फिर किस तरह सारी लकड़ियाँ एक साथ कर तोड़ने का आदेश देने पर बेटे लकड़ियों को तोड़ नहीं पाये - उसी तरह गर इंसान के पास इंसान का साथ हो तो उसे किसी भी मुश्किलातों का सामना करने में परेशानी नहीं होती. मामला तब पेचीदा होता है जब इंसान, इंसान से ज्यादा आडंबरी चीज़ों से दिल लगा बैठता है और उसकी ख्वाइश में अच्छे से अच्छे इंसान से भी दुश्मनी मोल लेता है आखिर इसका अंजाम?  पैसे, आडंबरी वस्तुयें सभी मोल पर मिल जाते हैं किन्तु एक सच्चा और अच्छा इंसान मिलना बहुत मुश्किल होता है. ज़िंदगी में इंसानों से प्यार करें ना के पैसों और भौतिकवादी दुनिया से. 

दिये से दिया जलता है और ऐसे ही अंधेरा मिटता है !

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जीवन में कभी किसी के लिये कुछ करने की इच्छा हो तो कुछ ज्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्युंके उस इच्छा में और करने की लगन में सब कुछ शामिल हो जाता है. आज "अंतरध्वनी" के तेहत मुझे भी न्योता मिला पंडितों और ज्ञानियों की सभा में जाने का और कुछ अत्यंत साधारण लोगों से मिलने का अवसर मिला. ये कार्यक्रम एक धर्मार्थ-संघठन के लिये दान और चंदा इक्कॅटा करने का कार्यक्रम था. जो चंदा जमा हुये हैं उन्हें भारत के एक छोटे से गांव में भेजा जायेगा जहां एक स्कूल बना है और गांव के वो बच्चे जो कभी शिक्षा पाने का ख्वाब भी नहीं देख सकते ऐसे बच्चों को और उनके परिवारों को एक आशा की किरण दीखाते हुये  डॉक्टर श्री. विजय तिवारी  जी अपनी संस्था दया सुमित्रा एजुकेशनल सोसाइटी इनकॉर्पोरेशन के तेहत " द्सेट पब्लिक स्कूल " चलाते हैं  और इनकी ये संस्था  भारत सरकार द्वारा "गैर-लाभ" संस्था करार दी गयी है.  हम जहां कयी रुपये आम चीज़ों में फालतू में खर्च कर देते हैं वहीं १ डॉलर से भारत के इस द्सेट पब्लिक स्कूल में एक बच्चा या बच्ची की पढ़ाई, एक वक़्त का खाना, उसकी टीचर की फीस का खर्चा पूरा

प्यार में जलना या ईर्ष्या करना कितना ज़रूरी समझा जाता है?

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प्यार में जलना या ईर्ष्या करना कितना ज़रूरी समझा जाता है? शायद कुछ प्रतिशत लोग इसे सही मानते हैं और कुछ प्रतिशत लोग इसे बुरा भी मानते हैं क्युंके अगर प्यार हो किसी से और उस  पर  भरोसा भी हो तब किसी बात से जलन या ईर्ष्या होने की आवशयकता नहीं है. लेकिन ऐसा भी मानना है के सच्ची मोहब्बत है तो जलन और ईर्ष्या तो होना स्वभाविक है।  खेर ये एक हद तक अपनी - अपनी सोच है, क्युंके अगर जिस से आप मोहब्बत करते हैं उसे आप पर विश्वास है तब आप किसी भी इंसान से बात करलें और वो कितना भी गुणी हो तब भी ईर्ष्या नहीं करेगा - लेकिन हाँ स्वयं में हमेशा कोई कमी मेहसूस करोगे तो हर किसी से ईर्ष्या और द्वयेश होगा. प्यार करें और प्यार करने दो - इन सब बातों से बेर -द्वयेश -ईर्ष्या सब उड़नछू हो जायेंगे और लोग ज्यादा सुखी होंगे। लेकिन फिर भी थोड़ा सी ईर्ष्या प्यार में ज़रूरी है क्युंके इस से ये पता चलता है के अगला तुम्हें खोने से डरता है ;)

ये किन एहसासों का दरिया है जहां दिल डूबने से नहीं घबराता?

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ऐसा क्यूं होता है की किसी एक के लिये दिल क्यूं मचलता है, बेचेन रेहता है या फिर उसी की यादों में खोया रेहाना चाहता है?  और उसी इंसान के आने से दिल के अंदर एक तूफान सा उठता है लेकिन चेहरा सन्नाटे से भरा रेहता है या फिर घबराया सा नज़र आता है.  किसी एक के लिये सभी सीमायें लांघकर, वक़्त ना हो तब भी बे-वक़्त वक्त निकालकर मिल आना, हर एक अदा पर दिल की तरंगो का लेहर उठना - ये किन एहसासों का दरिया है जहां दिल डूबने से नहीं घबराता? ये कैसे एहसास हैं जो बुलंदियों पर उड़ान भरते हैं और नीचे गिरने का भय भी नहीं रखते ? हो ना हो ये एहसास किसीके प्यार के ही नज़र आते हैं वर्ना इतनी हिम्मत और हौसला किसके पास हो सकता है?  प्यार की ताकत और उसके एहसासों की कोई सीमा नहीं तो उसकी कोई कल्पना भी नहीं... ये एहसास सिर्फ मेहसूस किया जा सकता है ना की बांटा या सुनाया जा सकता है !

कल किसने देखा?

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केहते हैं कल किसने देखा, अब देखो मेहता अंकल की बेटी संगीता पड़ोस के नटराजन अंकल के बेटे वेंकटेश को बेहद पसंद करती थी. रोज़ उसे स्कूल जाते समय तो स्कूल से आते समय देखती और वेंकटेश का ध्यान अपनी तरफ खेंचने की कोशिश करती. वेंकटेश किसी से नहीं तो अपनी माँ वैजयंती से बहुत डरता था और इसी वजह से कभी किसी लड़की की तरफ आंख भी उठाकर नहीं देखता था ! वैसे ज़रूर देखता होगा नहीं? छिप-छिप कर हा हा हा ..खेर जैसे में यहाँ हंस रही हूँ उसी तरह वेंकटेश के दोस्त और संगीता की सहेलियाँ जो जानती थी की संगीता को वेंकटेश पसंद है, वो भी हँसती थी। एक दिन संगीता ने आव देखा ना ताव, अपनी सहेलियों और वेंकटेश के शर्मीले स्वभाव से तंग आकर एक दिन स्कूल जाते वक़्त वेंकटेश जब अपनी मोटर साइकल निकल कर जा ही रहा था के संगीता मोटर साइकल के  पीछे की सीट पर सवार होगयी और बस वेंकटेश सीधे तेज़ रफ़्तार से संगीता को लेकर उड़नछू होगया ... दोस्तों कभी कभी प्यार में ये सब तो चलता है ...किसी को तो आगे कदम बढ़ाना पड़ता है ...वर्ना सोचिये आज तक संगीता देखते और वेंकटेश शरमाते रेहते जाते  काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, कौनसा जीना

अहंकार को छोड़ दें और स्वयं को हल्का करें क्यूंकि ऊँचाई पर वोही उठता है जो हल्का होता है ;)

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अहंकार अच्छे से अच्छे इंसान को खत्म कर देता है और अगर वो अहंकार को नहीं छोड़ता तब उसका साथ उसके साथी छोड़ देते हैं. ज़िंदगी में जब आये थे तब क्या साथ लाये थे जो कुछ पाने पर या हासिल करने पर इंसान इतना अहंकारी हो जाता है के वो भूल जाता है के जो भी उसने यहाँ पाया है वो यहीं रखकर जाने वाला है फिर चाहे वो उसकी काबिलियत ही क्यूं ना हो! खाली हाथ आये हैं और खाली हाथ जायेंगे तो फिर जब तक यहाँ हैं क्यूं ना हंस-खेलकर बितायें सभी के संग. अहंकार को छोड़ दें और स्वयं को हल्का करें क्यूंकि ऊँचाई पर वोही उठता है जो हल्का होता है विनम्रता को अपनाइये फिर देखिये किस-किस उंचाई तक आप पहुँचते हैं लेकिन हाँ, खैर रखिये अहंकार का मैल ना चढ़ने दें !

ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है .. ;)

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ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है और जो इसे जी सका वो तो जीता ही जो ना जी सका वो ना यहाँ का रहा ना ही वहां का रहा जिसका हम मुर्दे होने के बाद ही पता चलता है. आज मेरी सहेली 'वेन हुई' से मुलाकात हुई जो के एक साल से कॅन्सर के रोग से पीड़ित उसके इलाज़ से सफल होकर निकली हैं . बात यहाँ रोग के बारे में नहीं है. में वेन की हिम्मत और हौसले की दाद देती हूँ की ज़िंदगी के कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी उन्होने कभी भी हौसला नहीं छोड़ा और अगर कभी कहीं मायूसी या उदासी हुई तब हम सभी दोस्तों ने हौसला दिया और उनके हिम्मत की दाद दी. ८ केमो थेरपी के पूर्ण होने पर "वेन हुई" को इस कॅन्सर से मुक्ति मिलेगी ये डॉक्‍टोरों का केहना था। इसी बात पर एक उमीद नज़र आई थी के सिर्फ ८ केमो , लेकिन जैसे-जैसे एक -एक करके केमो होने लगे और हर केमो के बाद की तकलीफें भी उतनी ही बढ़ने लगी और वेन हुई की मुश्किलें और जीवन से संतुलन बनाये रखने का परिश्रम बढ़ने लगा. हर बढ़ते हुये कठिनाई पर वेन हुई और भी साहसी बनती गयी और आखिर में सफलता हासिल करके ही निकली।  आज वेन हुई हर किसी को जीवन को देखने का दृष्टिकोण दे सकती है औ

सब्र का फल मीठा होता है तो कभी खट्टा भी ...!

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ज़िंदगी में कभी किसी से मिलो तो प्यार से मिलो. हाँ, ये बात और है के हर कोई अपनी तरह या अपनी सोचका हो ये ज़रूरी नहीं. हर इंसान एक जैसा होता या होती नहीं, इसका मतलब ये भी नहीं के हम उनसे दुश्मनी मोल लें . हाँ, ये सही है के आप उनसे कितनी दोस्ती रखें इसका एक अंदाज़ा रख सकते हैं और जैसे-जैसे आप उनसे मिलने -जुलने लगते हो आप उन्हें करीब से समझने लगते हो.  इसी समझने को दोस्ती केहते हैं ;) कयी बार सब्र का फल मीठा होता है तो कभी खट्टा भी, इसीलिये संभल कर और सोच-समझकर किसी भी बात को बढ़ावा देना चाहिये.  इससे किसी का भी दिल नहीं टूटता और ना ही कोई गिले-शिकवे की गुंजाइश होगी .

खुलके मुस्कुरा तू ज़िंदगी

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ज़िंदगी में कभी सोचा है की मोहब्बत की दरअसल उम्र नहीं होती ! जी हाँ, नहीं होती और शायद इसीलिये वो हमेशा जवान होती है ! और ना केवल मोहब्बत बलके मोहब्बत करने वाले भी जवान हो जाते हैं उनको कभी उम्र की जंग नहीं लगती. जो दिन भर लड़ाई नफरत और गुस्सेल प्रवृति रखते हाइन उनकी तो ज्यादा उम्र ना होते हुये भी बुढापे की ओर जाते नज़र आने लगते हैं। प्यार वाक़ई ज़िंदगी को गुलशन बना देता है और यार को गुलज़ार ! ज़िंदगी एक है और इसे अगर प्यार-मोहब्बत से बिताई जाये तो क्या हर्ज़ है? मरना और मारना तो कोई भी कर सकता है, लड़ाई में ताक़त काम और मोहब्बत में सारा जहां आपका दीवाना होता है ! मोहब्बत करें, नफरतों से वैसे भी किसी का कुछ नहीं बनने वाला - ऐसे में कुछ ऐसी पंक्तियाँ ज़ेहन में आई..... खुलके मुस्कुरा तू ज़िंदगी शायद मुर्दे में आजाये ज़िंदगी कुछ नहीं तो बोल पड़ेगी ज़िंदगी नफरतों में खत्म है ज़िंदगी अंत का क्या करेगी ये ज़िंदगी आती-जाती ये है ज़िंदगी फिर क्यूं ना खुलके जी ज़िंदगी मोहब्बत का सिलसिला शुरू कर ज़िंदगी ~ फ़िज़ा

जो गुज़र गया सो गुज़र गया ! वक्त कभी भी किसी का भी इंतेज़ार नहीं करता।

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बात बहुत सालों की है जब किरण और सूरज का प्रेम-विवाह हुआ था ! केहने के लिये किसने किस से प्रेम-किया था इसका अंदाज़ा किसी को भी नहीं था लेकिन दोनो ने बहुत परिश्रम से माता-पिता की सम्मति मिलने तक आंदोलन किया और घरवालों के आशीर्वाद से ब्याह कर लिया ! ब्याह तो कर लिया किन्तु अब जो ज़िंदगी है वो तो दोनो को निभानी है ... जीवन की ऊंच -नीच और ज़िंदगी की भाग-दौड़ में कब दोनो पति-पत्नी की जिम्मेदारी तो निभाने लगे परंतु एक दूसरे के लिये वो प्रेमी और प्रेमिका बन ना कहीं पीछे भूल आये ! शायद इसी प्यार की कमी की वजह से दोनो के बीच एक कड़वाहट सी आगयी ! अब तक तो दोनो एक-दूसरे के आदि हो चुके थे इस वजह से भी एक-दूसरे से दूर भी नहीं रेहा पाते थे, मगर जब भी आमना-सामना हो तब दोनो हे लंगूर की तरह लड़ने-झगड़ने बैठ जाते। सूरज घर के बारे में सोचकर हे घबरा जाता और घर जाने से ही कतरता ! किरण की हमेशा से शिकायत यही रेहती के सूरज कभी वक़्त पर घर नहीं आता ! जो भी हो दोनो को एक-दूसरे से लड़ने के कयी बहाने बैठे-बिठाये मिल जाता था.  एक दिन सूरज अपने दफ्तर में काम की मुसरुफियत में था और उसे उसके मॅनेजर से एक कॉल आता ह

जीवन जीने के लिये है और वो भी खुशी से ना के आँसूओं से!

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ये सोचना की हमारी खुशी किसी के पास धरोहर रखी है तो ये बिल्कुल गलत है. अपनी खुशी अपने अंदर होती है. हमें ही ढूंडना पड़ता है हमारे अंदर की खुशी को . केहते हैं ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है और मुर्दे खाक जिया करते हैं. लेकिन एक बात है के इंसान जाने-अनजाने में दूसरों को ये एहसास दिलाता है के उसकी खुशी दूसरों पेर निर्भर है और कयी बार इस बात का दूसरे फायदा भी ऊठाते हैं. ज़िंदगी में अपनी खुशी क्या है पेहले इसे समझिये और जब एक बार जान जाओगे के ज़िंदगी में आपकी पसंद और खुशी क्या है तो फिर आपको किसी इंसान के उपर निर्भर करने की ज़रूरत नहीं।  यदि आप का साथी आपका साथ नहीं देता तो दुख तो होगा ज़रूर लेकिन दुखी रेहने के लिये अपने दिल में खुशियों को अलविदा मत कहो. जीवन जीने के लिये है और वो भी खुशी से ना के आँसूओं से!

अपने अतीत से वास्ता रखना अपने अच्छे के लिए !

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अक्सर लोग ज़िन्दगी में पिछली बातें भूल जाते हैं।  इंसान में पहले जैसे उदारता और स्नेह नहीं रहा जाता। कहीं अपने आप में एक गुरुर आजाता है सरे प्रशस्ति और प्रशंसा की वजह से, ऐसे में धरती से जोड़ रखने के लिए उसे एक बार पिछली बातों से अवगत करा देना अच्छा होता है क्यूंकि इससे कई रिश्ते जुड़े रहते हैं। लेकिन अगर इंसान खुद ये आदत रखे जहाँ वो अपनी पुरानी अर्थ-व्यवस्था को याद रखता है तो उसमें विनम्रता बनी रहती है और ये ज़िन्दगी की ख़ुशी के लिए बहुत ही अनिवार्य है। अपने अतीत से वास्ता रखना अपने अच्छे के लिए !

गीदड़ की जब मौत आती है तब वह शहर की तरफ भागता है

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किसी  ने ठीक ही कहा है गीदड़ की जब मौत आती है तब वह शहर की तरफ भागता है ! ऐसे  में उसे जो भी चकाचौध करने वाली बात नज़र आती है वो बस उसी में फँस जाता है !  ज़िन्दगी हसीं तो ज़रूर है दोस्तों ये उन से पूछिये जिन्होंने शायद कम सावन देखे हों मगर सावन सही अर्थ में देखे और समझे हों ! ज़िन्दगी उम्र से नहीं बल्कि अनुभव से ज्यादा मायने रखता है वरना तो लोग सौ साल तक जी भी लेते हैं और फिर भी अनुभव और यतार्थ जीवन की सच्चाई को परखने और समझने में दुविधाजनक हो जाते हैं। यहाँ हम ज़िन्दगी की हक़ीक़तों, अनुभवों और कुछ आम जीवन की बातें करेंगे - अब तक जो आपने पढ़ा वो सही लग रहा है तो मुझे ज़रूर इत्तिला करें और हो सके तो किस विषय पर पढ़ना ज्यादा पसंद करेंगे ये भी बता सकते हैं ! आईये, पहली पायदान पर आज आप सभी का स्वागत है ! ~ सेहर