मोहब्बत का नाम ही संगीत है फिर चाहे शाम ढले या सेहर शाम तक चले ;)
आज शाम ढले, मैने रेडियो स्टेशन पर अपना संगीत, गीत और कविता के माध्यम से लोगों से जुड़ने की कोशिश की ये पेहली बार था जीवन में एक ऐसा कदम उठाना जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। वर्ना लोग कितने व्यवसाय में रुचि रखते हैं और फिर कोशिश भी करते हैं के देख लें यदि अच्छा लगा तो कर लेंगे वर्ना दूसरी देखलेंगे . खैर रेडियो एक व्यवसाय तो नहीं लेकिन एक शौक के तौर पर शुरवात हो गयी और रेडियो ज़िंदगी की मेहरबानी है के मौका देने से वो भी नहीं चूके. हमेशा से एक आस रही के अपनी पसंद के गीत-संगीत सुनायें ताके लोगों को और भी संगीत का , या कलाकारों के बारे में जानना चाहिये और उनके संगीत को भी समझकर पसंद कर - सराहना चाहिये - ऐसी ही एक कोशिश - "शाम ढले" कार्यक्रम के ज़रिये मैं संगीत की विवेचना करना चाहती हूँ। आज पेहला कार्यक्रम करते वक़्त मैं खुद हर एक गीत पर नाच रही थी, गीत के बोल गा रही थी - बेहद हृदय में खुशी के फूल खिल पड़े. जाने क्यूं दिल को ये तस्सली हुई जब ऐसे गायकों और कवियों के संगीत को पेश किया जो के फिल्मों से हटकर संगीत की पवित्रता में अपना स्थान बनाना चाहते हैं, ऐसे गुणी कलाकारों को