ये मैं नहीं अनुभव कहता है ;)
कल्पना के घोड़े भी दौड़ना क्या दौड़ना है, एक पल आप हवा में तो एक पल पाताल में ! ऐसे में एक सय्यम बरतना कितना ज़रूरी हो जाता है। कल्पना जितना हमें सुलझाने में मदत करती है उतनी ही उलझने में भी कामियाब होती है। ये अनुभव कहता है, मैं नहीं हा हा हा। अक्सर कल्पना की वजह से हौसले का बुलंद होना और न होना बहुत हानिकारक हो सकता है। रिश्ते में दबाव तो कभी दरार पैदा हो सकता है। इसीलिए कल्पना रुपी पतंग को जोर का हवा चलते वक़त न उड़ाएं शायद पतंग तुम्हें भी उड़ा ले जा सकती है - ये मैं नहीं अनुभव कहता है :)