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Showing posts from January, 2015

धोका ना खाना ये "मत" मत देना दलबदलियों को ...

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आजकल जो देखो कुछ ना कुछ बेचने निकला है फिर चाहे वो स्त्री हो या पुरुष - कोई फरक नहीं पड़ता . जबतक स्त्री पर अत्याचार होता है तब एक इंसानी दौर पर किसी को भी अपना हक या उतरदायित्वा समझ नहीं आता लेकिन जैसे ही चुनाव का मामला आजाता है हर कोई स्त्री का दुख समझने भी लगता है और उसका परिहारण भी करना।  फाड़ दो इस नक़ाब को परिहारण करना ही है तो किसी को किसी पदवी या कुर्सी की ज़रूरत नहीं होती....बस उद्धार करने का दिल होना चाहिये वो ज़स्बा होना चाहिये ढोंगियों का पर्दा फाश हो ! जनकल्याण और लोकतंत्रा का  यही  है नारा !

ज़िंदगी में अपनी पेहचान बनाना सीखो ना की किसी की पेहचान से लटक कर उनकी दूम बन जाओ ;)

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ज़िंदगी में कभी किसी को भी आप कितना भी चाहो या पंसंद करो मगर जिस बात से आप वाक़िफ़ ना हो या फिर जिस बात को आप नहीं मानते हो तो उस बात पर टिके रहो। जसबाती होने से राय नहीं बदलना चाहिये. अपनी राय या अपनी सोच अपनी होती है और ये अपने होने का भी एक सबूत है . जैसे के मैं बापू को मानती हूँ लेकिन बापू के हर बात को मैं नहीं मानती और जिस बात को मैं नहीं मानती में उसका समर्थन भी नहीं करती. बापू जब केहते हैं अस्पृश्यता एक अभिशाप है तो मैं मानती हूँ और कबूल करती हूँ लेकिन वहीं जब बापू केहते हैं के कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल भी हाज़िर कर दो - इस बात को मैं नहीं मानती और इसका समर्थन भी नहीं करती। ज़िंदगी में अपनी पेहचान बनाना सीखो ना की किसी की पेहचान से  लटक कर  उनकी दूम बन जाओ.  अपने होने का दम भरो और स्वाभिमान से जियो, होसले के साथ जियो !