साथियों को दशेहरा मुबारक हो

आज सुबहा मैं अपनी सहपाठी से बात कर रही थी जब दशेहरा की बधाई मिली तब अनायास ही बचपन का दशेहरा याद आया. राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में रेहते वक़्त दस दिन तक रामलीला चलता था, जाने-पेहचाने लोग अभिनय करते थे और हर एक चौपाई गा के सुनाया जाता था. केन्द्रिया विधायला में रामायण जिसे साथ खंडो में बांटा गया था उसे पढ़ते वक़्त भी रामलीला की रामायण से कथा को जोड़ने की कोशिश करते थे. दशरथ और कैकई और उनकी चाल फिर राम को चौदाहा वर्ष वनवास और फिर एक के बाद एक खण्ड अभिनीत किया जाता था। जब दसवें दिन राम अपने रामबाण से रावण का वध करते हैं तब मन में जहां खुशी होती थी के लंका पर विजयी हुये राम, लेकिन फिर एक दुख भी होता था के अब रात को रामलीला नहीं होगा क्युंके जैसे हर कहानी की शुरुवात होती है उसी तरह उसका अंत भी. दूसरे दिन दोपहर को रामलीला की टोली निकल पड़ती थी राम, सीता, लक्ष्‍मण, हनुमान को एक मिलिटरी ट्रक में बैठाकर सारे कॉलोनी में जुलूस निकाला जाता था और सारे बच्चे राम-सीता को देखने के लिये दौड़ पड़ते थे. ये जानते हुये भी के सीता के रूप में कोई और नहीं सामने वाले अंकल का बेटा है लेकिन सीता के अवतार में खूबसूरत और सुशील पतिवृता सीता वो लगती थी - वाक़ई कैसे दिन थे जुलूस जो NDA से होकर सीधे रामलीला मैदान में पहुंचती जहां १०-१५ फुट का रावण और रावण का भाई मेघनाथ  पटाखों से भरे  पुतले होते थे जिस पर राम फिर एक -एक कर जलता हुआ रामबाण छोड़कर रावण और मेघनाथ  को जलाते थे और फिर क्या था एक भावुक पल तैयार हो जाता था जहां लोग रावण को जलते देख दुखी भी होते थे मुझे ये पता नहीं चला के वो दुखभरा माहोल रामलीला खत्म होने की वजह से होता था या वाक़ई रावण की मौत होते देख दुख होता था।.. खैर सभी अपने -अपने घर की ओर लौट आते. आजकल मैं रावण को जलते नहीं देख पाती न ही रामलीला देख पाती हूँ मगर दशेहरा के दिन में सिंधुर -होली खेलने ज़रूर जाती हूँ शायद अब रावण का जलने से बेहतर सिंधुर होली खेलने में अधिक प्रसन्नता मिलती है .
जीवन का खेल ही कुछ ऐसा होता है के इंसान हर पल में, घड़ी में खुशी की तलाश करता है और मेरा मानना है के खुशी हमारे अपने अंदर होती है जिसे बाहर ढूंडने की ज़रूरत नहीं होती बस अपने अंदर ही होती है बस टटोलकर देखिये! 
मेरे सभी दोस्तों और इस लेख को पढ़ने वाले साथियों को दशेहरा मुबारक हो 

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