"प्रकृति का प्रकोप भूमि पर"....


इंसान कभी भी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएगा शायद इसीलिए इंसान कहलाता है!
सबसे अधिक ज्ञानी और समझदार, वरना जानवर नहीं कहलाता? जो वोही करता है जो उस से उम्मीद राखी जाती है !
"प्रकृति का प्रकोप भूमि पर", बस इस वाक्यांश का प्रयोग करते करते वो अपनी हर मुराद पूरी करता है और जब नुक्सान भुगतना पड़ता है तब किसी और का कन्धा खोजता है !
भोपाल गैस कांड २ दिसंबर १९८४ में हुआ था और उसकी वजह तो प्रकृति पर दे दिया किन्तु असल वजह घूसखोरी और भ्रष्टाचार है और आज जो हम चेन्नई की त्रासदी को भी प्रकृति का दोष मान रहे हैं !
आँखें खोल रे इंसान कब तक खुद को और दूसरों को अँधेरे में रखेगा? आखिर अपने ही वंशज को खोएगा क्यूंकि जब वर्षा से बाढ़ आई तब उसने उंच -नीच कुछ नहीं देखा। यहीं सीख ले इंसान स्वर्ग-नरक का खेल यहीं हैं ! छोटा-बड़ा का मोल सबको आखिर एक ही तरह चुकाना पड़ता है - जाग जा इंसान, अपने ही अंत का कारन बन रहा है तू कैसा बुद्धिजीवी है रे?
जागो, अन्याय, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाओ, चंद सिक्कों के लिए अपनी ही नहीं सारी इंसान जाती का सर्वनाश न करो. 

~ फ़िज़ा 

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