मृत्यु दंड, ये एक सजा है या फिर हत्या करने का एक तरीका ?
मृत्यु दंड, ये एक सजा है या फिर हत्या करने का एक तरीका ?
मेरा मानना है की किसी भी जीव की हत्या, हत्या होती है और इसे किसी भी रूप में पनपने या सराहने नहीं देना चाहिए ! जानवर हो या इंसान जीवन तो सबका एक सामान होता है, फिर आपको या हमको या किसी भी जगह के नियम को क्या हक़ है किसी को भी मृत्यु दंड देने का ?
जीवन देना और लेना कभी भी इंसानी हक़ में नहीं है ! यहाँ तक की आत्महत्या भी एक अभिशाप है, ये गलत है - ऐसा मेरा मानना है। किसी भी द्रोही हो या निरद्रोही कानून के फैसले होने तक क्या पता किसकी जान ले ली गयी है निर्मोही मृत्यु दंड के तहत. अपराधी को दंड दो परन्तु मृत्यु दंड नही. इसका खंडन मैं करती हूँ इस लेख द्वारा क्यूंकि हमें अपराध से घृणा होनी चाहिए न के अपराधी से क्यूंकि ये इंसान ही है और हम और आप भी इंसान हैं और ग़लतियां या गुस्ताखियाँ हम सब से हो सकतीं हैं - मानव त्रुटि के तहत मृत्यु दंड बहुत ही नाइंसाफी है और इंसानी भाषा में इसे महज़ हत्या करना है !
दंड से भय पैदा होता है और भय से इंसान की मानसिक रूप से गलत प्रभाव पड़ता है. इंसान का मन बदलना चाहिए और उसके लिए जो प्रयास हो सके वही करना चाहिए न की मृत्यु दंड.
पीड़ा जिसे भी होती है मरने वाले मर जाते हैं और कभी लौटकर नहीं आते किन्तु आँख का बदला आँख तो ये संसार अँधा ही मर जायेगा! इंसान के लिए प्यार और सदभावना होनी चाहिए न की द्वेष और क्लेश !
फ़िज़ा
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