इंसान तू कब हैवान बना ये तू भी नहीं जानता
मुझे नफरत है जो इंसान बेहकावे में आजाते हैं। हम अपनी मर्ज़ी से नहीं पैदा होते .... एक वजह होती है हमारे इस संसार में आने के लिये और उसकी वजह एक स्त्री और पुरुष के अलावा कुछ नहीं होता. लेकिन हम इंसान अपने आपको जितनी बंदिशों और दायरों में बांध के रखें उतना ही अपने आपको सुरक्षित मेहसूस करते हैं।
लानत है... ऐसे इंसानियत पर । क्युंके में एक हिन्दू परिवार मैं जनी हो के किसी एक गांव, एक प्रदेश या एक जाती से हैं इस करके मेरा सोचना और रेहना सब कुछ उसी प्रदेश और प्रांत जैसे होना वाजिब नहीं, मुझे मेरी आज़ादी है सोचने की और उस सोच पर अमल करने की और ये मेरा जन्मसिध अधिकार है।
इसे ना तो कोई नेता या प्रजा या प्रजातंत्रा या राजनेतिक दल बदल सकता है।
इतने साल में दुनिया को जो देखा और लोगों को जो समझा आज मुझे गर्व और कृतगयता मेहसूस होता है अपने माता-पिता के प्रति जिन्होने कभी भी मुझे एक हिन्दू होकर जीने में प्रोत्साहित या दबाव भी नहीं डाला। मुझे मेरा बचपन याद आता है जहां मैं मंदिरों में जाती थी, वहीं मेरी पड़ोसी आंटी जो की एक पेंटिकोस्टल ईसाई थी और उनकी अपनी बेटी अस्पताल में होने पर मुझे अपनी बेटी मानकर मुझ से बाइबल पढ़ने के लिये केहाती थी ... मेरे माता-पिता ने कभी इस बात से इंकार नहीं किया के उनके घर जाया ना करो या बाइबल ना पढ़ा करो। इसी तरह बशीर अंकल जिनके दो बेटे थे और बेटी ना होने की वजह से वो मुझे अपनी बेटी मानते थे और प्यार से पारु बुलाया करते थे - मैं हिन्दू परिवार में पैदा होकत एक हिन्दू बेटी बनने के बावजूद एक ईसाई बेटी और मुसलमान बेटी बन पायी इसके लिये शत -शत प्रणाम उस माता-पिता का जिन्होने मुझे आजाद खयालों से पाला-पोसा.
हम इंसान पेहले हैं फिर हिन्दू-मुसलमान, सीख ईसाई जैन ज्यू इत्यादि ...किन्तु परंतु इंसान -इंसान को उस रूप में अगर नहीं देख पाता तो उस नज़र का कसूर है जो अपने को अपना नहीं समझ पाता और अपने दर्द सा दूसरे में वो दर्द नहीं मेहसूस करता।
इंसान नहीं वो हैवान है। बदले की भावना उस से भी खतरनाक बीमारी है गर इसका इलाज नहीं हुआ तो महामारी का रोग है जो मौत के घाट ही उतारेगा।
इंसान तू कहाँ से पैदा हुआ और कहाँ को जायेगा?
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