ज़िंदगी में अपनी पेहचान बनाना सीखो ना की किसी की पेहचान से लटक कर उनकी दूम बन जाओ ;)
ज़िंदगी में कभी किसी को भी आप कितना भी चाहो या पंसंद करो मगर जिस बात से आप वाक़िफ़ ना हो या फिर जिस बात को आप नहीं मानते हो तो उस बात पर टिके रहो। जसबाती होने से राय नहीं बदलना चाहिये. अपनी राय या अपनी सोच अपनी होती है और ये अपने होने का भी एक सबूत है .
जैसे के मैं बापू को मानती हूँ लेकिन बापू के हर बात को मैं नहीं मानती और जिस बात को मैं नहीं मानती में उसका समर्थन भी नहीं करती. बापू जब केहते हैं अस्पृश्यता एक अभिशाप है तो मैं मानती हूँ और कबूल करती हूँ लेकिन वहीं जब बापू केहते हैं के कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल भी हाज़िर कर दो - इस बात को मैं नहीं मानती और इसका समर्थन भी नहीं करती।
ज़िंदगी में अपनी पेहचान बनाना सीखो ना की किसी की पेहचान से लटक कर उनकी दूम बन जाओ.
अपने होने का दम भरो और स्वाभिमान से जियो, होसले के साथ जियो !
Har baat kisiki bhi sahi nahi ho sakti to other human ko. Reason is, hume humari apni body hai to dimag hai & uska vajood = independent soch.
ReplyDeleteKoi gulam hi hoga jise apni soch nahi hogi.
Ab rahi baat Bapu ki dusra gal dharane ki teaching ki. Hume uske pichhe ka logic nahi pata isliye humara koi opinion nahi hai. Usually, this psychology works if yr enemy or opponent is eye for an eye person.
DeleteSo yeh mera mashwara hai
हेतल बहुत बहुत शुक्रिया के आपने इस पोस्ट को पढ़ा और अपनी टिप्पणी दी - अच्छा लगा आपका यहाँ देखकर :)
Deleteहेतल, आपने जो कहा वो सही है की सभी का अपना अस्तित्वा, पेहचान होती है और यही मैने भी लिखा है। किन्तु बापू जी की हर बात हर किसी को अपनाना चाहिये ऐसा भी कोई नियम नहीं है। बेशक उनकी जो भी वजह रही हो इस बात की पुष्टि के लिये किन्तु मानना या ना मानना ये हर किसी के अपना निजी निर्णय है।
बाकी सब ठीक - जय श्री कृष्णा :)