सवाल करने वाले को न रोकें और न ही उन्हें नफरत से देखें!
स्कूल के दिनों में कक्षा में सवाल करना बुद्धिमानी की निशानी मानी जाती थी. आप ज्यादा सवाल करते हो तो अध्यापिका को और सभी बड़े-बुज़ुर्गों को लगता था के बच्चा जिज्ञासी है और ऐसे छात्र को हर कोई तारीफों के पुल पर खड़ा कर देता था. वोही सवाल जब आप अपने सरकार से, उसकी अर्थ-व्यवस्था से करे तो उसे आंतकवादी, देशद्रोही, तो अब नया सुना है 'अर्बन नक्सल ' का नाम करार दिया जाता है. इंसान को हर किसी अर्थ-व्यवस्था से सवाल करने का हक़ होना चाहिए, चाहे फिर वो उनके दफ्तर में हों, या समाज में! सवाल - जवाब से जानकारी बढ़ती है, मानसिक विकास होता है, चुनौती को गले लगाते हैं हम, अपने प्रयासों को देखने का, अपनी नाकामियाबी को समझने का अवसर प्राप्त होता है और अगर किसी सवाल का जवाब न भी मिले तब भी सवाल करना बंद नहीं होना चाहिए ! हर सवाल का जवाब न हों मगर हर सवाल हम सब को सोचने पर मजबूर कर देना चाहिए क्यूंकि तय मानसिकता हमें विकास करने से रोकती है ! हर देश का विकास उसमें बसने वाले लोगों से है, जनता से है ! ऐसे में जनता को सवाल पूछना बंद नहीं करना चाहिए और जब ऐसी अर्थ-व्यवस्था हमें सवाल करने से रोकती है य